Tuesday, November 18, 2008

मुक्तक 20

इन धमाकों में हमीं क्यों गीत गाना छोड़ दें
रात होती है तो जुगनू बेचमक रहता नहीं
तोड़ ही देती है किरणें शीत का भारी कवच
कोहरा कितना घना हो, देर तक रहता नहीं

धन खर्च करके लोग, सभी कुछ खरीद लाए
चाहत न मिल सकी है तो पैसे से क्या मिला?
भरते जो पानियों से मरुस्थल तो बात थी
बादल को सागरों पे बरसने से क्या मिला?

डा गिरिराजशरण अग्रवाल

5 comments:

विवेक सिंह said...

वाह वाह क्या बात है !

mehek said...

waah sundar

नीरज गोस्वामी said...

दोनों मुक्तक लाजवाब है...भाव और शब्द दोनों कमाल के...वाह...
नीरज

डा गिरिराजशरण अग्रवाल said...

तीनों मित्रों को धन्यवाद्।
गिरिराजशरण अग्रवाल

सुनीता शर्मा 'नन्ही' said...

आदरणीय सर ,आपकी प्रेरणा से भरपूर कलम को सादर प्रणाम !