Sunday, November 16, 2008

मुक्तक 19

यह आग है, इसके लिए क्या महल, कुटी क्या?
छप्पर में लगेगी तो हवेली न बचेगी
दीवार के हर जोड़ की रक्षा है ज़रूरी
इक ईंट जो खिसकेगी तो दूजी न बचेगी

हाथ ख़ाली हो तो मत शोहरत के पीछे भागिए
कारनामा कीजिए, फिर नाम पैदा कीजिए
मन की बेकारी जो है, अज्ञानता की देन है
पूछिए मत काम क्या है? काम पैदा कीजिए

डा गिरिराजशरण अग्रवाल

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