Tuesday, November 11, 2008

मुक्तक 14

अगर चिराग़ जलाने का होश बाकी है
अमावसों के अँधेरे से कुछ नहीं होता
अमल नहीं है तो कुछ भी नहीं है दुनिया में
विचार और इरादे से कुछ नहीं होता

माने कोई जो सच तो उसे आइना दिखा
भटका हो गर पथिक तो उसे रास्ता दिखा
बिखरे हुए हैं चारों दिशा में हज़ार भ्रम
आँखों को देखना नहीं, पहचानना सिखा

डा गिरिराजशरण अग्रवाल

4 comments:

mehek said...

माने कोई जो सच तो उसे आइना दिखा
भटका हो गर पथिक तो उसे रास्ता दिखा
बिखरे हुए हैं चारों दिशा में हज़ार भ्रम
आँखों को देखना नहीं, पहचानना सिखा
bahut sahi,sundar

Udan Tashtari said...

सुन्दर!

रंजना said...

bahut hi sundar panktiyan hain.

seema gupta said...

माने कोई जो सच तो उसे आइना दिखा
भटका हो गर पथिक तो उसे रास्ता दिखा
" bhut sunder"

Regards