इक हम हैं कि नींदों से जगाती है हमें धूप
सूरज का मगर सुबह के तारे को पता है
हम अपने लिए लक्ष्य तलाशा करें लेकिन
किस पेड़ पे फल है, यह परिंदे को पता है
सहयात्रियों को देख,हवाओं को भी परख
तूफ़ान सामने हो तो किश्ती की जाँच कर
सब कुछ परख चुके तो कभी सबके पारखी
कठिनाइयों के सामने अपनी भी जाँच कर
डा. गिरिराजशरण अग्रवाल
Saturday, November 15, 2008
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4 comments:
इक हम हैं कि नींदों से जगाती है हमें धूप
सूरज का मगर सुबह के तारे को पता है
हम अपने लिए लक्ष्य तलाशा करें लेकिन
किस पेड़ पे फल है, यह परिंदे को पता है.
बढ़िया मुक्तक प्रस्तुति के लिए धन्यवाद,
बहुत ख़ूब.
bahot hi umda muktak,motivate karne wali panktiyan...
iske liye aako dhero badhai ....
डा. गिरिराजशरण अग्रवाल
सादर अभिवंदन
रचना के भाव अतिसुन्दर हैं
सब कुछ परख चुके तो कभी सबके पारखी
कठिनाइयों के सामने अपनी भी जाँच कर
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