Saturday, November 15, 2008

मुक्तक 18

इक हम हैं कि नींदों से जगाती है हमें धूप
सूरज का मगर सुबह के तारे को पता है
हम अपने लिए लक्ष्य तलाशा करें लेकिन
किस पेड़ पे फल है, यह परिंदे को पता है

सहयात्रियों को देख,हवाओं को भी परख
तूफ़ान सामने हो तो किश्ती की जाँच कर
सब कुछ परख चुके तो कभी सबके पारखी
कठिनाइयों के सामने अपनी भी जाँच कर

डा. गिरिराजशरण अग्रवाल

4 comments:

महेन्द्र मिश्र said...

इक हम हैं कि नींदों से जगाती है हमें धूप
सूरज का मगर सुबह के तारे को पता है
हम अपने लिए लक्ष्य तलाशा करें लेकिन
किस पेड़ पे फल है, यह परिंदे को पता है.
बढ़िया मुक्तक प्रस्तुति के लिए धन्यवाद,

अमिताभ मीत said...

बहुत ख़ूब.

"अर्श" said...

bahot hi umda muktak,motivate karne wali panktiyan...

iske liye aako dhero badhai ....

विजय तिवारी " किसलय " said...

डा. गिरिराजशरण अग्रवाल
सादर अभिवंदन
रचना के भाव अतिसुन्दर हैं

सब कुछ परख चुके तो कभी सबके पारखी
कठिनाइयों के सामने अपनी भी जाँच कर