Sunday, November 9, 2008

मुक्तक 12

मिट न पाई आदमी से आदमी की दूरियाँ
सब घरों में एक जैसी जिंदगी पहुँची नहीं
बल्ब घर का ऑन करके देखिए, फिर सोचिए
कौन से कोने हैं, जिनमें रोशनी पहँची नहीं

मेघ पहले भी तेरे वश में न थे, अब भी नहीं
यदि कुआँ खोदा नहीं, पानी की आशा किसलिए
द्वार मन का बंद हो तो प्यार की खुशबू कहाँ
सीप को खोले बिना, मोती की आशा किसलिए

घर बंद अगर है तो सुगंधित नहीं होगा
खुशबुएँ हवा में कभी रुकने नहीं पातीं
फल चाहिए तो फिर हाथ बढ़ाना है ज़रूरी
शाखाएँ तो माली कभी झुकने नहीं आतीं

आप देखें किसको पाने की लगन है आपमें
ओस का कतरा भी है, बहता हुआ दरिया भी है
देखना यह है कि क्या बोया है, हमने आपने
कोख में धरती की मीठा फल भी है कड़ुआ भी है

डा गिरिराजशरण अग्रवाल

3 comments:

"अर्श" said...

आप देखें किसको पाने की लगन है आपमें
ओस का कतरा भी है, बहता हुआ दरिया भी है
देखना यह है कि क्या बोया है, हमने आपने
कोख में धरती की मीठा फल भी है कड़ुआ भी है


bahot hi sudar ,..mere pas word kam hai mushkil me hun kya kahun aapko dhero badhai...

mehek said...

sach bahut sundar,khas kar aakhari wala lajawab

रंजना said...

मेघ पहले भी तेरे वश में न थे, अब भी नहीं
यदि कुआँ खोदा नहीं, पानी की आशा किसलिए
द्वार मन का बंद हो तो प्यार की खुशबू कहाँ
सीप को खोले बिना, मोती की आशा किसलिए
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वाह ! लाजवाब ! अतिसुन्दर.......मन को छू गयीं पंक्तियाँ......साधुवाद.....