Friday, November 14, 2008

मुक्तक 17

वह युग जो जा चुका है, उसे मत भुलाइए
अच्छाइयाँ बहुत थीं, पुराने के साथ भी
दुनिया से अपनी दूरियाँ, पहले मिटाइए
हम अपने साथ भी हैं, ज़माने के साथ भी

भूल किसकी थी कि जानें आँकड़ों में ढल गई
आदमी अब आदमी कब रह गया, गिनती बना
शक्ति थी बाहों में जब तक हाथ फैलाए नहीं
कर्म ने जब हार मानी, क्या बना? विनती बना

डा गिरिराजशरण अग्रवाल

3 comments:

mehek said...

वह युग जो जा चुका है, उसे मत भुलाइए
अच्छाइयाँ बहुत थीं, पुराने के साथ भी
दुनिया से अपनी दूरियाँ, पहले मिटाइए
हम अपने साथ भी हैं, ज़माने के साथ भी
waah bahut hi badhiya laga ye wala muktak

मनोज अबोध said...

sir ji , achhe muktak hain, badhai !!!

girish pankaj said...

sundar muktak...