Thursday, October 30, 2008

मुक्तक 3

बहलावे भला साथ कहाँ तक देंगे
साधन ये सदा साथ कहाँ तक देंगे
चेहरे से मुखर होती है मन की भाषा
ये शब्द बता साथ कहाँ तक देंगे

इतिहास मेरा गिरना, सँभलना, चलना
हर मोड़ पे इक राह बदलना, चलना
ठहरा तो मैं रह जाऊँगा, पत्थर बनकर
चलना मेरा उद्देश्य है, चलना, चलना

हर रंग, हर अंदाज़ में ढलना सीखो
अनचाहे भी हर राह पे चलना सीखो
संसार में जीना नहीं आता तुमको
हर साँस में सौ रूप बदलना सीखो

अहसास किसी प्यास का रह जाता है
मंजि़ल पे भी इक रास्ता रह जाता है
तन-मन में समा जाने की खातिर
हम तुम मिलते हैं मगर फ़ासला रह जाता है

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