Tuesday, October 7, 2008

दोस्ती

रोशनी बनकर पिघलता है उजाले के लिए
शम्अ जल जाती है घर को जगमगाने के लिए

हमने अपनों के लिए भी मूँद रक्खा है मकाँ
पेड़ की बाहें खुली हैं हर परिंदे के लिए

प्रेम हो, अपनत्व हो, सहयोग हो, सेवा भी हो
सिर्फ़ पैसा ही नहीं, हर बार जीने के लिए

जितने भी काँटे हैं पग-पग में वे चुनते जाइए
रास्ते को साफ़ रखना आने वाले के लिए

एक दिन जाना ही है, जाने से पहले दोस्तो
यादगारें छोड़ते जाओ, ज़माने के लिए

समय बहुत तेज़ी से बदल रहा है. हम सपने बुनते हैं और वे एक एक कर बिखर जाते हैं.ऐसे समय में अपनों को जोड़े रखना और उनके दर्द को पहचानना बहुत ज़रूरी है. क्या हम कुछ करेंगे?

डा. गिरिराज शरण अग्रवाल

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