Thursday, October 2, 2008

घुटन

सिमटा तो आज अपने ही कमरे की छत बना।
कल तक तो आसमान सा फैला हुआ था मैं।
देखिये आज के बुजुर्गों की ओर। अपने ही परिवार में कितना अकेलापन महसूस करते हैं। क्यों है ऐसा। कभी उनके मन में झांक कर देखिये। आप पायेंगे वे आपकी ओर निहार रहे हैं। क्या कभी हम बूढे नहीं होंगे? आइये अपने घर को मकान ही मत रहने दीजिये।
गिरिराज शरण अग्रवाल

2 comments:

Unknown said...

absolutely true. very well composed

डा.मीना अग्रवाल said...

Very well articualted. Encompasses the true condition of an elderly person.