बाधाओं से लड़ती है बराबर दुनिया
संघर्ष से छू लेती है अंबर दुनिया
तुम भूल के यह शाख न कटने देना
इस शाख पे आशा की है निर्भर दुनिया
सावन को पुकारूँ तो घटनाएँ फैलें
लूँ साँस तो हर ओर हवाएँ फैलें
संसार मेरे वक्ष में सिमटे सारा
उत्साह में गर मेरी भुजाएँ फैलें
रोकेगा कहाँ पाँव यह पत्थर मेरा
चलता है तो रुकता नहीं लश्कर मेरा
मैं ओस की इक बूँद नहीं हूँ लोगो!
हर बूँद के अंदर है समंदर मेरा
इंसान हूँ अमृत का प्याला मैं हूँ
धुन कोई भी हो, गूँजने वाला मैं हूँ
सूरज जो छुपा, बढ़ के अँधेरा लपका
दीपक ने कहा देख उजाला मैं हूँ
Saturday, November 1, 2008
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5 comments:
इंसान हूँ अमृत का प्याला मैं हूँ
धुन कोई भी हो, गूँजने वाला मैं हूँ
सूरज जो छुपा, बढ़ के अँधेरा लपका
दीपक ने कहा देख उजाला मैं हूँ
bahut achcha or sachcha likha hai
बहुत अच्छे भाव के साथ लिखी गयी है यह कविता।
सुंदर किवता के िलए ढेर सारी बधाइयां ।
बहुत बढ़िया.
bahut gahare hain bhav
narayan narayan
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