आस्माँ मैला हुआ, पानी हवा दूषित हुए
मिटि्टयों में ज़हर ऐसा क्या कभी पहले भी था
रिश्ते नाते वह नहीं हैं जिनको सुनते आए हैं
आदमी जो आज है वह आदमी पहले भी था
रात कटनी चाहिए, सूरज निकलना चाहिए
रोशनी आ जाएगी घर में दरीचा हो न हो
तुम निरालेपन की धुन में क्यों लगे हो दोस्तो!
काम हो अच्छे से अच्छा, वह अनोखा हो न हो
डा गिरिराजशरण अग्रवाल
Wednesday, November 12, 2008
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1 comment:
दोनों मुकतक बहुत बढिया हैं।
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