Tuesday, December 2, 2008

मुक्तक 23

कुआँ ही खोद न पाओ तो फिर गिला कैसा?
ग़लत कहा कि 'ज़मीनों में जल नहीं मिलता'
इक इंतज़ार का अर्सा भी दरमियान में है
किसी को पेड़ लगाते ही फल नहीं मिलता

समय है लू का तो पुरवाइयों का मौसम भी
पवन झुलस गई शाखें निखार आती है
बताओ डालियाँ पतझर से हारती कब हैं?
बहार आती है और बार-बार आती है

डा गिरिराजशरण अग्रवाल